द हंस फाउंडेशन और एम्स ने एम्स, नई दिल्ली में अर्ली चाइल्डहुड डेवलपमेंट एण्ड न्यूरोरिहेबिलिटेशन सेंटर स्थापित कर एक अत्याधुनिक सुविधा के विकास के लिये सहयोग किया
प्रोजेक्ट “होल्डिंग हैण्ड इन मैजिकल ईयर्स’’ विकास में विलंब और दूसरी न्यूरोडेवलपमेंटल बीमारियों वाले बच्चों और किशोरों पर फोकस करेगा, जिसका लक्ष्य हर साल 10,000 से 12,000 लाभार्थी बनाना होगा
इस कार्यक्रम को टीएचएफ द्वारा एम्स के परिसर में एम्स के तकनीकी एवं निगरानी सहयोग के तहत लागू किया जाएगा
नई दिल्ली (अमन इंडिया ) । द हंस फाउंडेशन और एम्स के डिपार्टमेंट ऑफ पीडियाट्रिक्स के चाइल्ड न्यूरोलॉजी डिविजन के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस एण्ड एडवांस्ड रिसर्च फॉर चाइल्डहुड न्यूरोडेवलपमेंटल डिसऑडर्स ने प्रोजेक्ट ‘होल्डिंग हैण्ड इन मैजिकल ईयर्स: अर्ली चाइल्डहुड डेवलपमेंट एण्ड न्यूरोरिहेबिलिटेशन सेंटर’ पर कार्यान्वयन के लिये एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किये हैं। यह बच्चों को उनकी योग्यताओं के आधार पर विकास की अधिकतम क्षमता तक पहुँचाने हेतु सुविधाएं देने की एक नई बहुविषयक पहल है। इस पहल का लक्ष्य हर साल लगभग 10,000 से 12,000 बच्चों को फायदा पहुँचाना है।
भारत में अभी न्यूरोडेवलपमेंटल बीमारियों (एनडीडी) का कुल प्रसार लगभग 12% है और करीब पाँच में से एक मरीज को एक से ज्यादा एनडीडी हैं। एनडीडी से पीड़ित लगभग 45% बच्चों को अपर्याप्त विकास का जोखिम है, क्योंकि उपचार की पहचान और उस तक पहुँच की कमी है।
इस गठजोड़ के बारे में द हंस फाउंडेशन के सीईओ श्री संदीप जे कपूर ने कहा, “टीएचएफ में हम दिव्यांगों को सशक्त करने और सर्वांगीण मध्यस्थताओं के जरिये अपने समुदाय में आत्मनिर्भर एवं उत्पादक जीवन जीने में उनकी मदद करने के लिये प्रतिबद्ध हैं। एम्स “होल्डिंग हैण्ड इन मैजिकल ईयर्स’’ के साथ हमारी पहल का लक्ष्य एक अत्याधुनिक सुविधा के माध्यम से इस समस्या को सम्बोधित करना है, जहाँ विकास में विलंब और दूसरी न्यूरोडेवलपमेंटल बीमारियों, जैसे कि ऑटिज़्म, सेरीब्रल पाल्सी, अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (एडीएचडी) और स्पेसिफिक लर्निंग डिसएबिलिटी (एसएलडी) वाले बच्चों की जाँच और शीघ्र पहचान की जाएगी और साथ ही शीघ्र मध्यस्थता एवं सहयोगी सेवाएं होंगी, जोकि बहुविषयक उपचार का हिस्सा होंगी। आखिरकार हमारा मकसद यह सुनिश्चित करना है कि दिव्यांग लोग उच्च मानवतावादी मूल्यों वाले एक समावेशी समाज में साथर्क जिंदगी जीने का आनंद लें।”
यह टीएचएफ और एम्स का एक संयुक्त प्रयास है, जिस पर टीएचएफ द्वारा एम्स के परिसर में एम्स के तकनीकी एवं निगरानी सहयोग के तहत प्रत्यक्ष कार्यान्वयन होगा। इस प्रोजेक्ट के लिये एम्स की नोडल ऑफिसर प्रोफेसर शेफाली गुलाटी हैं। इस प्रोग्राम में विभिन्न धाराओं के विशेषज्ञ भी शामिल होंगे और हर व्यक्ति को सर्वश्रेष्ठ स्तर की सेवाएं प्रदान करेंगे।
एम्स के निदेशक प्रोफेसर एम श्रीनिवास ने कहा, “अक्षम बनाने वालीं या चिकित्सकीय, कई स्थितियों और विकृति को नियंत्रित किया जा सकता है और जीवन में उनकी उलझनों को कम किया जा सकता है, अगर गरिमा और मानववादी मूल्यों को सुनिश्चित करने के परिप्रेक्ष्य में सही समय पर जाँच करने, पता लगाने और संभव समाधानों के साथ मध्यस्थता करने के लिये एक व्यापक/गहन उपचार प्रणाली हो। यहां प्रदान की जाने वाली सेवाओं को बच्चे की अपनी जरूरतों के अनुसार निजीकृत बनाया जाएगा और उनमें एक सर्वांगीण तरीके से संपूर्ण मूल्यांकन भी होगा। इसमें बहुविषयक सेवाओं की एक श्रृंखला भी होगी, जैसे कि वाचन एवं भाषाई सेवाएं, परिवार के लिये परामर्श एवं प्रशिक्षण, निदान एवं उपचार, नर्सिंग सेवाएं, पोषण सेवाएं, पेशेवर थेरैपी, फिजिकल थेरैपी, मनोवैज्ञानिक सेवाएं। अतिरिक्त सहयोगी सेवाएं भी होंगी, जैसे कि एडीआईपी स्कीम या टीएचएफ के माध्यम से सहयोगी सामग्री प्रदान करना, देखभाल करने वालों का प्रशिक्षण, घर पर मध्यस्थता के लिये पैरेंट्स के लिये हैण्डी टूल्स, सामुदायिक जुड़ाव और निगरानी।”
इस एमओयू पर एम्स, नई दिल्ली में 1 जुलाई 2023 को एम्स के प्रतिनिधियों- प्रोफेसर एम श्रीनिवास, डायरेक्टर, प्रोफेसर मीनू वाजपेयी, डीन, एकेडमिक्स, श्री एन के शर्मा, सीनियर फाइनेंशियल एडवाइजर, डॉ. अनूप कुमार डागा, अस्पताल प्रबंधन, प्रोफेसर शेफाली गुलाटी, फैकल्टी इन चार्ज, चाइल्ड न्यूरोलॉजी डिविजन, डिपार्टमेंट ऑफ पीडियाट्रिक्स, प्रोफेसर पंकज हरि, डिपार्टमेंट ऑफ पीडियाट्रिक्स और टीएचएफ के प्रतिनिधियों- श्री संदीप जे कपूर, सीईओ, द हंस फाउंडेशन और सुश्री शबीना बानो, सीनियर प्रोग्राम मैनेजर, द हंस फाउंडेशन, की उपस्थिति में हस्ताक्षर किए गए।