फोर्टिस गुरुग्राम में महिला रोगी की चुनौतीपूर्ण सिंगल पोर्ट गॉल ब्लैडर सर्जरी संपन्न, मरीज़ के शरीर में अंगों की उल्टी (इन्वर्टेड) स्थिति के चलते सर्जरी की प्रक्रिया बनी कठिन
साइटस इनवर्सस ऐसा दुर्लभ विकार है जिसमें शरीर में अंगों की इन्वर्टेड स्थिति होती है – दायीं तरफ के अंग शरीर के बाएं भाग में और बायीं ओर के अंग दाएं भाग में मौजूद होते हैं
गुरुग्राम (अमन इंडिया ) । फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम के डॉक्टरों ने 46 वर्षीय एक मरीज़ की चुनौतीपूर्ण लैपरोस्कोपिक गॉल ब्लैडर सर्जरी को अंजाम दिया है। मरीज़ के पेट में अंगों की स्थिति प्राकृतिक रूप से रिवर्स थी, जिसे साइटस इनवर्सस कहा जाता है, यानि उनके शरीर में दायीं तरफ के अंग बाएं भाग में और बायीं ओर के अंग दाएं भाग में थे। साइटस इनवर्सस दुर्लभ किस्म का विकार है जिसका निदान और सर्जिकल उपचार करने में काफी कठिनाई पेश आती है और इसके लिए सर्जन को भी काफी दक्षता तथा तैयारियों की आवश्यकता होती है। गैल ब्लैडर की लैपरोस्कोपिक सर्जरी के मामले में हाल में हुई प्रगति के चलते मरीज़ की गॉल ब्लैडर सर्जरी को एक चीरा (सिंगल पोर्ट) लगाकर अंजाम दिया गया। डॉ अजय कुमार कृपलानी, डायरेक्टर, मिनीमॅल एक्सेस बेरियाट्रिक एंड जी आई सर्जरी, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम के नेतृत्व में डॉक्टरों की टीम ने इस जटिल प्रक्रिया को अंजाम दिया और मरीज़ को स्थिर अवस्था में दो ही दिनों के बाद अस्पताल से छुट्टी भी मिल गई। उपलब्ध चिकित्सकीय रिकॉर्डों के मुताबिक, यह पहला अवसर है जबकि सिंगल पोर्ट के जरिए गॉल ब्लैडर की सफल सर्जरी भारत में की गई जबकि दुनिया में इस प्रकार की यह केवल तीसरी सर्जरी है।
मरीज़ को पेट के बायीं ओर ऊपरी हिस्से में बार-बार दर्द की शिकायत के साथ फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम में भर्ती किया गया था। जांच के बाद पता चला कि उनके गॉल ब्लैडर में पथरी है और यह भी कि गॉल ब्लैडर पेट में दायीं ओर होने की बजाय बायीं तरफ पेट के ऊपरी हिस्से में स्थित था। इतना ही नहीं, मरीज़ का एपेंडिक्स भी बायीं (दायीं की बजाय) ओर ही था। यहां तक कि उनके पेट में छोटी आंत और उनका हृदय भी बायीं तरफ स्थित था जबकि ये अंग बायीं ओर होते हैं। इस मेडिकल कंडीशन को साइटस इनवर्सस विद डैक्स्ट्रा-कार्डिया कहा जाता है।
सर्जरी की जानकारी देते हुए डॉ अजय कुमार कृपलानी, डायरेक्टर, मिनीमॅल एक्सेस बेरियाट्रिक एंड जी आई सर्जरी, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम ने बताया, ''हमने मरीज़ की सिंगल पोर्ट लैपरोस्कोपिक सर्जरी कर गॉल ब्लैडर बाहर निकाला और मरीज़ ने अच्छी रिकवरी भी कर ली है तथा कुल-मिलाकर कॉस्मेटिक नतीजे भी बेहतरीन रहे हैं। इस प्रकार की दुर्लभ स्थिति में खासतौर से एडवांस्ड लैपरोस्कोपिक प्रक्रियाओं में सर्जरी काफी चुनौतीपूर्ण हो जाती है। लैपरोस्कोपी से गौल ब्लैडर को 4 चीरे (पोर्ट) लगाकर निकाला जाता है। लेकिन इस मामले में हमने सिंगल पोर्ट लैपरोस्कोपिक सर्जरी से ही गॉल ब्लैडर को निकाला जो कि हमारा पसंदीदा तरीका है और अब तक इस प्रकार की हजारों प्रक्रियाओं का सफलतापूर्वक अंजाम देने का हमें अनुभव हासिल है। इस प्रक्रिया से मरीज़ को कम तकलीफ होती है, दाग भी नहीं दिखायी देता और रिकवरी भी शीघ्र हो जाती है। लैपरोस्कोपी से गॉल ग्लैडर को निकालने के लिए, सर्जन आमतौर से एक कैमरा पर्सन के साथ मरीज़ की बायीं ओर खड़े होते हैं और मॉनीटर दांयी तरफ लगाए जाते हैं। लेकिन साइटस इन्वर्सस में, हम मरीज़ के दायीं ओर खड़े हुए और मॉनीटर को बायीं ओर रखना पड़ा। उनकी नाभि में 1.2 से.मी. आकार का एक चीरा लगाया गया जिससे टेलीस्कोप और इंस्ट्रूमेंट्स अंदर डालकर गॉल ब्लैडर को इसी चीरे वाली जगह से निकाला गया।''
डॉ कृपलानी ने बताया, ''मिरर-इमेज एनॅटमी के लिए लैपरोस्कोपिक सर्जरी करना काफी चुनौतीपूर्ण है क्योंकि इसमें इंस्ट्रूमेंट्स की जगह पूरी तरह से उलट जाती है (इंस्ट्रूमेंट को बायीं तरफ रखने की बजाय टेलीस्कोप के दांयी ओर और इसी तरह टेलीस्कोप की जगह भी बदल जाती है), साथ ही, दाएं हाथ से काम करने वाले सर्जन के लिए ओरिएंटेशन तथा डिसेक्शन भी रिवर्स होने के कारण कठिनाई पेश आती है। और यह स्थिति तब और भी मुश्किल हो जाती है जबकि सिंगल इन्साइज़न सर्जरी करनी होती है जिसमें केवल एक चीरा लगाया जाता है और इंस्ट्रमेंट्स भी पारंपरिक 4 पोर्ट सर्जरी से अलग आपस में नज़दीक होते हैं। क्लीनिकली, साइटस इन्वर्सस ऐसा विकार है जिसका कोई लक्षण दिखायी नहीं देता। मेडिकल इमेजिंग की मदद से ही इस स्थिति को ठीक से समझा जा सकता है और शरीर के भीतरी अंगों की पूरी स्थिति का सही-सही मूल्यांकन हो पाता है, जो कि किसी भी सर्जरी की तैयारी से पहले जरूरी होता है।''
महिपाल सिंह भनोत, सीनियर वाइस प्रेसीडेंट एंड बिज़नेस हैड, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट ने कहा, ''मरीज़ की दुर्लभ कंडीशन को देखते हुए यह काफी चुनौतीपूर्ण मामला था। लेकिन समय पर निदान होने और डॉ अजय कुमार कृपलानी के नेतृत्व में अस्पताल के अनुभवी डॉक्टरों की एक्सटपर्ट टीम द्वारा कुशलतापूर्वक सर्जरी से मरीज़ के उपचार में मदद मिली।''
साइटस इन्वर्सस टोटेलिस (एसआईटी) ऐसा दुर्लभ किस्म का जन्मजात विकार है जिसमें एब्डॉमिनल और थोरेसिक अंगों की शरीर में स्थिति रिवर्स होती है (मिरर इमेज ट्रांसपॉज़िशन)। यह साइटस ओरिएंटेशन का ग्लोबल डिफेक्ट है और इसमें सामान्य लेफ्ट-राइट सिमिट्री में गड़बड़ी देखी गई है। साइटस इन्वर्सस की संभावना 1:10,000 से 1:20,000 तक होती है और यह कंडीशन आमतौर पर पुरुषों में पायी जाती है।
फोर्टिस हैल्थकेयर लिमिटेड के बारे में
फोर्टिस हैल्थकेयर लिमिटेड, जो कि आईएचएच बेरहाड हैल्थकेयर कंपनी है, भारत में अग्रणी एकीकृत स्वास्थ्य सेवा प्रदाता है। यह देश के सबसे बड़े स्वास्थ्यसेवा संगठनों में से एक है जिसके तहत् 27 हैल्थकेयर सुविधाओं समेत (इनमें वे परियोजनाएं भी शामिल हैं जिन पर फिलहाल काम चल रहा है), 4300 बिस्तरों की सुविधा तथा 400 से अधिक डायग्नॉस्टिक केंद्र (संयुक्त उपक्रम सहित) हैं। भारत के अलावा, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) तथा श्रीलंका में भी फोर्टिस के परिचालन है। कंपनी भारत में बीएसई लिमिटेड तथा नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) पर सूचीबद्ध है। यह अपनी ग्लोबल पेरेंट कंपनी आईएचएच से प्रेरित है तथा मरीज़ों की विश्वस्तरीय देखभाल एवं क्लीनिकल उत्कृष्टता के उनके ऊंचे मानकों से प्रेरणा लेती है। फोर्टिस के पास ~23,000 कर्मचारी (एगिलस समेत) हैं जो दुनिया में सर्वाधिक भरोसेमंद हैल्थकेयर नेटवर्क के तौर पर कंपनी की साख बनाने में लगातार योगदान देते हैं। फोर्टिस के पास क्लीनिकल से लेकर क्वाटरनरी केयर सुविधाओं समेत अन्य कई एंसिलियरी सेवाएं उपलब्ध हैं।