फोर्टिस एस्कॉर्ट्स ओखला में पिडियाट्रिक कैंसर से पीड़ित 6-वर्षीय उज़्बेकी बच्चे की पहली सफल किडनी ऑटो-ट्रांसप्लांट सर्जरी की


 *फोर्टिस एस्कॉर्ट्स ओखला में पिडियाट्रिक कैंसर से पीड़ित 6-वर्षीय उज़्बेकी बच्चे पर भारत की पहली सफल किडनी ऑटो-ट्रांसप्लांट सर्जरी की गई

बाइलेट्रल विल्म्स ट्यूमर का किया गया सफल उपचार दुनियाभर में अब तक इस प्रकार के केवल 16 मामले ही दर्ज 


दिल्ली (अमन इंडिया ) । फोर्टिस एस्कॉर्ट्स ओखला के डॉक्टरों ने मेडिकल क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल करते हुए अत्यंत दुर्लभ और जटिल किस्म के पिडियाट्रिक किडनी कैंसर - बाइलेट्रल विल्म्स ट्यूमर (नेफ्रोब्लास्टोमा) से पीड़ित उज्बेकिस्तान के 6-वर्षीय बच्चे का सफल उपचार किया है। यह भारत में अपनी तरह का पहला मामला है। 

इस बच्चे को जब अस्पताल लाया गया तो उसकी हालत काफी गंभीर थी और दोनों गुर्दों (किडनी) में ट्यूमर की वजह से उसके जीवन पर खतरा मंडरा रहा था। उज्बेकिस्तान में उसकी कीमोथेरेपी चल रही थी लेकिन इसके बावजूद उसके जीवित बचने की संभावना अनिश्चित थी, जिसके चलते उसके पेरेंट्स ने भारत में इलाज करवाने का विकल्प चुना। मरीज को इलाज के लिए फोर्टिस एस्कॉर्ट्स, ओखला लाया गया जहां डॉ परेश जैन डायरेक्टर ऑफ यूरोलॉजी एंड किडनी ट्रांसप्लांट के नेतृत्व में डॉक्टरों की अत्यंत कुशल और विशेषज्ञ टीम ने बेहद नाजुक तथा जटिल किस्म की किडनी ऑटो-ट्रांसप्लांट प्रक्रिया को अंजाम दिया। यह सर्जरी करीब आठ घंटे तक चली और सफल रही, इसके बाद बिना किसी जटिलता के साथ मरीज की रिकवरी भी शुरू हो गई। 


इस बच्चे को अस्पताल लाने के बाद जांच करने पर पता चला कि उसके दोनों गुर्दों में ट्यूमर है। लेकिन बाएं गुर्दे पर कैंसर का ज्यादा असर हुआ था, और ट्यूमर को पूरी तरह से निकालते समय गुर्दे को भी नुकसान का जोखिम काफी था। इसके अलावा, कैंसर की वजह से लिंफ नोड्स भी आकार में बढ़ गए थे, जो कि शरीर के इम्यून सिस्टम के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। इसके मद्देनज़र, डॉक्टरों ने दाएं गुर्दे के प्रभावित भाग को हटाने के लिए अगस्त 2024 में लैपरोस्कोपिक राइट पार्शियल नेफ्रक्टॅमी (नेफ्रोन-स्पेयरिंग सर्जरी – एनएसएस) करने का फैसला किया। इस प्रक्रिया के दौरान, दाएं भाग के लिंफ नोड्स तथा बाएं भाग के बढ़े हुए लिंफ नोड्स भी सावधानीपूर्वक निकाले गए। बाएं गुर्दे की बायप्सी भी इसी लैपरोस्कोपिक प्रक्रिया के दौरान की गई ताकि बार-बार सर्जरी करने के जोखिम से बचा जा सके। 


सर्जरी के बाद, मरीज की उज्बेकिस्तान में कीमोथेरेपी की गई और पिछले साल नवंबर में दोबारा जांच के लिए फोर्टिस एस्कॉट्स, ओखला लाया गया। यहां पीईटी-सीटी स्कैन से दाएं गुर्दे में किसी प्रकार का कैंसर का कोई चिह्न नहीं मिला और बाएं गुर्दे में भी कैंसर में रिग्रेशन दिखायी दिया। इन परिणामों से उत्साहित होकर मेडिकल टीम ने बाएं गुर्दे में शेष बचे ट्यूमर का भी इलाज शुरू किया। लेकिन सर्जरी की इस दूसरी स्टेज में पता चला कि बाएं गुर्दे के ऊपर, पिछले उपचारों और सर्जरी की वजह से टिश्यू की एक मोटी परत जमा हो चुकी थी, जिसकी वजह से गुर्दे के स्वस्थ टिश्यू से इस ट्यूमर को अलग करना काफी मुश्किल था। 


इस मामले की जटिलता के मद्देनज़र, डॉक्टरों ने मरीज के पेट के निचले भाग में एक मामूली चीरा लगाकर गुर्दे को शरीर से अलग करने (ऑटो किडनी ट्रांसप्लांट) का फैसला किया। इस प्रक्रिया को अपनाने का फायदा यह हुआ कि ट्यूमर को सुरक्षित और बेहद सटीक तरीके से निकाला जा सका और कैंसर कोशिकाओं को फैलने से भी बचाव हो सकता। इस गुर्दे में से बेहद सावधानीपूर्वक ट्यूमर को हटाया गया, इसके बाद डॉक्टरों ने अत्यंत कुशलत तरीके से धमनियों और मूत्र नलिका को दोबारा जोड़ा (रीकंस्ट्रक्ट)। कैंसर को ट्यूमर से मुक्त करने के बाद, इसे वापस बच्चे के पेट के निचले भाग में रीप्लांट किया गया (ऑटो-ट्रांसप्लांटेशन)। इस पूरी प्रक्रिया का परिणाम यह हुआ कि बच्चे की धीरे-धीरे रिकवरी होने लगी और अब स्वास्थ्यलाभ कर रहा है। 


इस मामले की जानकारी देते हुए डॉ परेश जैन डायरेक्टर ऑफ यूरोलॉजी एंड किडनी ट्रांसप्लांट, फोर्टिस एस्कॉर्ट्स, ओखला, नई दिल्ली* ने बताया, “यह मेडिकल उपलब्धि वाकई काफी उल्लेखनीय है क्योंकि अब तक दुनियाभर में इस प्रकार के केवल 16 मामले ही दर्ज किए गए हैं और भारत में इससे पहले ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया था। भारत में, विल्म्स ट्यूमर आमतौर पर 3 से 4 वर्ष की उम्र के बच्चों में ही देखा गया है, और यह काफी दुर्लभ तथा जटिल होने की वजह से चुनौतीपूर्ण माना जाता रहा है। एडवांस स्टेज में यह और भी जटिल हो जाता है तथा दोनों गुर्दों (बाइलेट्रल/द्विपक्षीय) को भी प्रभावित कर सकता है, तथा तत्काल इलाज नहीं करने पर मरीज की जान का खतरा बढ़ जाता है।


“दुनियाभर में, इस प्रकार की प्रक्रियाओं को लैपरोस्कोपी से अंजाम नहीं दिया जाता बल्कि दो अलग-अलग सर्जिकल टीमों की मदद ली जाती है जिनमें एक पिडियाट्रिक ओंकोसर्जरी तथा दूसरी किडनी ट्रांसप्लांटेशन के लिए होती है। लेकिन इस मामले में, एक ही स्पेश्यलाइज़्ड टीम ने इन दोनों जटिल प्रक्रियाओं को पूरी दक्षता और तालमेल का परिचय देते हुए सफलतापूर्वक पूरा किया। इस विशेष किस्म की सर्जरी का मकसद यह था कि मरीज की मां को किडनी डोनेशन न करना पड़े। डॉक्टरों की कुशलता के चलते यह संभव हो पाया और मां का गुर्दा तथा सेहत दोनों का बचाव हो सका। साथ ही, मरीज को जीवन भर इम्यूनोसप्रेशन की मजबूरी से बचाया गया जो कि किडनी ट्रांसप्लांट के बाद आमतौर से जरूरी होता है। इन दवाओं के कई प्रकार के साइडइफेक्ट्स हो सकते हैं और इंफेक्शन का रिस्क भी बढ़ता है। साथ ही, इन दवाओं पर खर्च का वित्तीय बोझ भी कम हुआ है।


*डॉ जैन ने कहा इस बच्चे की कम उम्र को देखते हुए, बहुत संभव था कि उसके अपने जीवनकाल में कम से कम तीन बार किडनी ट्रांसप्लांट कराना पड़ता। लेकिन इस सर्जरी ने उसकी अपने नैचुरल किडनी फंक्शन को सुरक्षित रखा है, जिससे बार-बार ट्रांसप्लांट करवाने की जरूरत नहीं रह गई है।


*मरीज़ की माँ* ने कहा, “हम भारत काफी उम्मीदें लेकर आए थे क्योंकि उज्बेकिसतन में हमारे बेटे की हालत में कोई सुधार नहीं हो रहा था। फोर्टिस के डॉक्टरों ने हमें भरोसा दिलाया कि हमारे बेटे की सेहत में सुधार हो सकता है। हम डॉ परेश जैन और उनकी पूरी टीम के हृदय से आभारी हैं, उन्होंने काफी मेहनत से हमारे बच्चे का जीवन बचाया है। वह अब दोबारा खेलने-कूदने लगा है और उसके चेहरे पर मुस्कान लौट आयी है, हम अस्पताल और डॉक्टरों के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं कि उन्होंने हमारे बेटे को नया जीवनदान दिया है।


*डॉ विक्रम अग्रवाल, फेसिलिटी डायरेक्टर, फोर्टिस एस्कॉर्ट्स, ओखला* ने कहा, “यह भारत में इस प्रकार की सर्जरी का दुर्लभ मामला है, जिसने मल्टीडिसीप्लीनरी केयर में अस्पताल की कुशलता का लोहा मनवाया है। डॉ परेश जैन के नेतृत्व में हमारे डॉक्टरों की समर्पित टीम ने इस मामले में सभी पहलुओं का पूरी गहरायी से मूल्यांकन करने के बाद बेहट सटीकता के साथ इस सर्जरी को अंजाम दिया। यह अपनी तरह का अनोखा चुनौतीपूर्ण मामला था, और इसमें मिली सफलता  हमारी टीम के समर्पण, कुशलता और आपस में तालमेल को रेखांकित करती है।

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