फोर्टिस सी-डॉक हॉस्पीटल फॉर डायबिटी एंड साइंसेज और एम्स ने भारतीय आबादी में मोटापे की नई परिभाषा जारी की


भारतीयों के लिए मोटापे की संशोधित परिभाषा जारी

भारत में रहने वाले एशियाई भारतीयों के संदर्भ में, 15 वर्षों बाद, मोटापे की एक नई परिभाषा को जारी किया गया है जो द लांसेट डायबिटीज़ एंड एंडोक्राइनोलॉजी द्वारा दुनियाभर में जारी नई परिभाषा के अनुरूप है


दिल्ली (अमन इंडिया) ।  नेशनल डायबिटीज़ ओबेसिटी एंड कलेस्ट्रोल फाउंडेशन ((N-DOC) तथा फोर्टिस सी-डॉक हॉस्पीटल फॉर डायबिटी एंड साइंसेज़ और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ने भारतीय आबादी में मोटापे की नई परिभाषा जारी की है। यह नया वर्गीकरण एशियाई भारतीयों में मोटापे और उससे जुड़ी अन्य कई स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने की दिशा में बढ़ाया गया महत्वपूर्ण कदम है।  

पृष्ठभूमि  

मोटापा संबंधी नए दिशा-निर्देशों को अनेक महत्वपूर्ण कारकों के चलते जारी करने की जरूरत थी, ये इस प्रकार हैंः  

1. बीएमआई के पुराने मापदंडः एशियाई भारतीयों में मोटापा संबंधी पिछले दिशा-निर्देशों को 2009 में जारी किया गया था (प्रमुख लेखक -प्रोफे. अनूप मिश्रा), जिसका आधार बॉडी मास इंडैक्स (बीएमआई, वज़न किलोग्राम में/कद मीटर में) था। लेकिन हालिया शोध ने मोटापे तथा संबंधित परेशानियों/रोगों का सही तरीके से पता लगाने, खासतौर से एशियाई भारतीयों के मामलों में, केवल बीएमआई पर निर्भरता की कमियों की ओर इशारा किया है।

2. नए हेल्थ डेटाः अध्ययनों से इस बात का भी खुलासा हुआ है कि एशियाई भारतीयों में पेट के आसपास चर्बी जमा होने का संबंध इंफ्लेमेशन (सूजन) तथा अन्य संबंधित बीमारियों से है, जो कि नई परिष्कृत परिभाषा की आवश्यकता को रेखांकित करती है।  


3. अहानिकर मोटापा और “परिणाम सहित मोटापा” में अंतर

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नए दिशा-निर्देशों के प्रमुख तत्व

1. पेट के मोटापे (चर्बी) पर विशेष ज़ोरः पेट के आसपास चर्बी जमा होने का संबंध इंसुलिन रेजिस्टेंस से है और यह एशियाई भारतीयों में काफी सामान्य है, तथा इसे मोटापे के डायग्नॉसिस में महत्वपूर्ण माना गया है।

2. अन्य संबंधित रोगों का समावेशः नई परिभाषा में मोटापा जनित रोगों जैसे डायबिटीज़ (मधुमेह) तथा कार्डियोवास्क्युलर रोगों (हृदय धमनी से जुड़ रोग) को भी डायग्नॉस्टिक प्रक्रिया में शामिल किया गया है, जो यह सुनिश्चित करता है कि मोटापा संबंधी स्वास्थ्य जोखिमों की अनदेखी न हो, और इन रोगों के प्रबंधन पर भी पूरा ध्यान दिया जा सके।

3. मोटापे से संबंधित यांत्रिक (मैकेनिकल) समस्याओं का समावेशः उदाहरण के लिए, घुटनों एवं कूल्हों में ऑस्टियोआर्थराइटिस आदि, दैनिक गतिविधियों के दौरान सांस फूलना, जिनकी वजह से जीवन की गुणवत्ता पर खराब असर पड़ता है।  

मोटापे का दो चरणों वाला वर्गीकरण  

संशोधित दिशा-निर्देशों में दो चरणों की वर्गीकरण प्रणाली को प्रस्तुत किया गया है, जिसमें दोनों को यानि सामान्य और पेट के मोटापा को शामिल किया गया हैः  

इस अध्ययन में, मोटापे को दो चरणों में वर्गीकृत किया गया है। दोनों के लिए ही शुरुआती बिंदु 23 kg/m2 से अधिक बीएमआई हैः  

· मोटापा स्टेज 1: अधिक एडिपोसिटी (BMI > 23 kg/m²) जिसमें अंगों की कार्यप्रणाली या नियमित दैनिक गतिविधियों पर किसी प्रकार का स्पष्ट प्रभाव दिखायी नहीं देता। इस चरण में, मोटापे से किसी प्रकार की रोग संबंधी (पैथोलॉजिकल) समस्याएं पैदा नहीं होती (अहानिकारक मोटापा), लेकिन यह स्टेज 2 में बदल सकता है, जिसके साथ कई प्रकार की यांत्रिक एवं रोग संबंधी समस्याएं जुड़ी होती हैं।  

· मोटापा स्टेज 2: मोटापे की एडवांस स्टेज जिसमें बीएमआई का आंकड़ा 23 kg/2, होता है, और साथ ही होता है

o एब्डोमिनल एडिपोसिटी (यानि पेट पर अधिक चर्बी), जिसके कारण कमर की चौड़ाई बढ़ जाती है या कमर और ऊंचाई का अनुपात (W-HtR).  अधिक होता है।

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o निम्न में से कोई एक शारीरिक तथा अंगों की कार्यप्रणाली पर असर डालता है

§ यांत्रिक (मैकेनिकल) कंडीशन (जैसे अधिक वजन की वजह से घुटनों का आर्थराइटिस) अथवा  

§ मोटापे से जुड़े रोगों का होना (जैसे टाइप 2 डायबिटीज़)

 उपरोक्त (“परिणाम सहित मोटापा”) से स्पष्ट है कि मोटापे के कारण शरीर के विभिन्न अंगों की कार्यप्रणालियां प्रभावित होती हैं जिनके चलते प्रभावित व्यक्ति में ऐसे लक्षण दिखायी देते हैं जिनका अधिक गहन तरीके से प्रबंधन करना जरूरी होता है।

उपरोक्त वर्गीकरण के आधार पर, आवश्यकतानुसार वज़न कम करने की रणनीति को नए दिशा-निर्देशों के अनुरूप कारगर और पर्सनलाइज़ तरीके से इस्तेमाल में लाया जा सकता है।  

अध्ययन की विधि

इस अध्ययन को डेल्फी प्रक्रिया की मदद से कराया गया, जो कि एक संरचनात्मक संचार तकनीक है और मोटापे तथा मेटाबोलिक विकारों से जुड़े विशेषज्ञों को इसमें शामिल किया गयाः  

· पांच सदस्यों की संचालन समिति ने सर्वसम्मति से नतीजे पर पहुंचने की प्रक्रिया की निगरानी की।  

· अक्टूबर 2022 से जून 2023 के दौरान पांच राउंड में सर्वे कराए गए।  

· प्रतिभागियों में चिकित्सकों के अलावा सर्जन, फिजियोथेरेपिस्ट तथा न्यूट्रिशनिस्ट शामिल थे।  

· सर्वे के लिए मोटापे का वर्गीकरण, डायग्नॉस्टिक विधियों तथा हस्तक्षेप संबंधी दिशा-निर्देशों जैसे प्रमुख मानकों के मामले में 67% सहमति के साथ एकमत होने के लिए 5-प्वाइंट लाइकर्ट स्केल का प्रयोग किया गया।  


विशेषज्ञों का कहना है –  

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पद्म श्री से सम्मानित तथा फोर्टिस सी-डॉक हॉस्पीटल में डायरेक्टर - डायबिटीज़ एवं एंडोक्राइनोलॉजी डॉ अनूप मिश्रा ने इन नतीजों के महत्व पर ज़ोर देते हुए कहाः  

“भारत में मोटापे की दरें तेजी से बढ़ रही हैं, और अब इस रोग ने शहरों से बाहर भी पसरना शुरू कर दिया है। नई गाइडलाइंस काफी महत्वपूर्ण हैं और इन्हें आसानी से लागू किया जा सकता है, तथा इनसे देशभर में मोटापे से जुड़ी परेशानियों के संदर्भ में स्टेज-संबंधी रणनीतियों की जानकारी मिलती है। इन्हें ध्यान में रखकर जल्द से जल्द और उचित तरीके से वेट लॉस थेरेपी ली जा सकती हैं।”

डॉ नवल विक्रम, प्रोफेसर ऑफ मेडिसिन, एम्स, नई दिल्ली ने कहाः

“भारतीयों के संदर्भ में मोटापे की एक स्पष्ट परिभाषा होना काफी महत्वपूर्ण है ताकि जल्द से जल्द इससे जुड़े रोगों का पता लगाकर मोटापे से निपटने के उपायों को अमल में लाया जा सके। यह अध्ययन मोटापे से संबंधित हमारी समझ को बेहतर बनाने के साथ-साथ भारतीय आबादी में मोटापे की समस्या से निपटने की तर्कपूर्ण नीतियों की भी जानकारी देता है।”

निष्कर्ष  

हाल में जारी इस संशोधित परिभाषा (पिछली परिभाषा के जारी होने के 15 वर्षों के बाद इसे जारी किया जा रहा है) और वर्गीकरण प्रणाली का उद्देश्य भारत में मोटापे का डायग्नॉसिस, उपचार तथा इसका उचित ढंग से प्रबंधन करना है। भारतीय आबादी की प्रमुख विशिष्टताओं को ध्यान में रखते हुए, ये गाइडलाइंस देशभर में बढ़ रही मोटापे की समस्याओं तथा उससे जुड़ी मधुमेह (डायबिटीज़) की महामारी और अन्य कई रोगों से मुकाबला करने के लिए एक मजबूत फ्रेमवर्क उपलब्ध कराती है।

फोर्टिस सी-डॉक हॉस्पीटल डायबिटीज़, एंडोग्राइनोलॉजी एंड एलाइड मल्टी स्पेश्यलिटीज़ः

फोर्टिस सी-डॉक हॉस्पीटल राजधानी दिल्ली के चिराग एंक्लेव में 20,000 वर्ग फुट क्षेत्रफल में स्थित 23 बिस्तरों वाली सुविधा है। अस्पताल जनवरी 2012 से कार्यरत है और यह उत्तर भारत में अपनी किस्म के उन गिने-चुने अस्पतालें में से है जहां डायबिटीज़, मेटाबोलिक रोगों और एंडोक्राइन विकारों के उपचार की व्यापक सुविधाएं उपलब्ध करायी गई हैं। अस्पताल में सभी तरह की उन्नत सुविधाओं से सुसज्जित कमरे, 2 ऑपरेटिंग स्वीट्स, डायबिटिक फुट एंड वुंड केयर के लिए एडवांस सेंटर, वैज्ञानिक तरीके से वेट लॉस और वेट मैनेजमेंट, बेरियाट्रिक एवं मिनिमल एक्सेस सर्जरी, इंसुलिन पंप, टोटल नी/हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी, डायबिटिक आइ

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लैब और डायलिसिस लैब, चौबीसों घंटे कार्यरत डायग्नॉस्टिक लैब, रेडियोलॉजी तथा फार्मेसी सेवाएं उपलब्ध हैं। अस्पताल में कार्यरत मेडिकल विशेषज्ञों की समर्पित टीम, दुनियाभर में अत्याधुनिक टैक्नोलॉजी आधारित मान्य प्रोटोकॉल्स का पालन करती है। साथ ही, अंतरराष्ट्रीय ख्याति-प्राप्त पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित और डॉ बी सी रॉय पुरस्कार प्राप्त प्रोफे. अनूप मिश्रा भी हैं जो डायबिटीज़ एक्सर्ट तथा शोधकर्ता हैं।  


फोर्टिस हैल्‍थकेयर लिमिटेडः

फोर्टिस हैल्‍थकेयर लिमिटेड, जो कि आईएचएच बेरहाड हैल्‍थकेयर कंपनी है, भारत में अग्रणी एकीकृत स्‍वास्‍थ्‍य सेवा प्रदाता है। यह देश के सबसे बड़े स्‍वास्‍थ्‍यसेवा संगठनों में से एक है जिसके तहत् 28 हैल्‍थकेयर सुविधाएं, 4,500+ बिस्‍तरों की सुविधा (ओ एंड एम सुविधाओं समेत) तथा 400 से अधिक डायग्नॉस्टिक सेंटर (संयुक्त उपक्रम सहित) शामिल हैं। फोर्टिस भारत के अलावा, संयुक्‍त अरब अमीरात (यूएई) तथा नेपाल और श्रीलंका में भी परिचालन करती है। कंपनी भारत के बीएसई लिमिटेड और नेशनल स्‍टॉक एक्‍सचेंज (एनएसई) पर सूचीबद्ध है। इसे कई ग्लोबल कंपनियों और अपनी प्रवर्तक कंपनी – आईएचएच से बल मिलता है जिसके परिणामस्वरूप यह मरीजों के लिए वर्ल्ड-क्लास केयर एवं क्‍लीनिकल उत्‍कृष्‍टता के ऊंचे मानक रचती है। फोर्टिस के पास ~23,000 कर्मचारियों (एगिलस डायग्‍नॉस्टिक्‍स लिमिटेड सहित) का मजबूत आधार है जो दुनिया का सबसे भरोसेमंद हैल्‍थकेयर नेटवर्क बनने के लिए अपना दृष्टिकोण साझा करते हैं। फोर्टिस मरीजों के लिए क्‍लीनिक्‍स से लेकर क्‍वाटरनरी केयर सुविधाओं और अन्य कई संबद्ध सेवाओं समेत एकीकृत स्‍वास्‍थ्‍य सेवाएं उपलब्‍ध कराती है।

नेशनल डायबिटीज़ ओबेसिटी एंड कलेस्ट्रोल फाउंडेशन (एनडीओसी):

फोर्टिस हॉस्पीटल नई दिल्ली में डॉ अनूप मिश्रा के नेतृत्व में संचालित नेशनल डायबिटीज़ ओबेसिटी एंड कलेस्ट्रोल फाउंडेशन (इंडिया) ने मेटाबोलिक रोगों से बचाव और प्रबंधन के क्षेत्र में अग्रणी संगठन के रूप में अपनी पहचान बनायी है। फाउंडेशन के कार्य समाज में वंचित समुदायों, महिलाओं एवं बच्चों पर केंद्रित हैं, और यह शहरी झुग्गी बस्तियों के बाशिन्दों के बीच मधुमेह के प्रसार तथा हृदय रोगों के जोखिमों पर गहन शोधकार्यों से जुड़ा है। एनडीओसी ने मार्ग (MARG) प्रोग्राम एवं प्रोजेक्ट दिशा (DISHAA) समेत कई स्वास्थ्य शिक्षा संबंधी प्रयासों को बड़े पैमाने पर लागू किया है, जो देशभर के 50 शहरों में 900,000 लोगों तक पहुंच बना चुके हैं। फाउंडेशन के नवाचारी प्रयासों में भारत का पहला पोषण शिक्षा कार्यक्रम शाामिल है जो खासतौर से प्रौढ़ों तथा बुजुर्ग महिलाओं को ध्यान में रखता है, तथा इसे विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय का समर्थन प्राप्त है। इसके अलावा, अपने “डायबिटीज़ रथ” मोबाइल

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क्लीनिक पहल के जरिए, एनडीओसी ने दिल्ली की झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियों में रहने वाले 250,000 लोगों तक डायबिटीज़ केयर का लाभ पहुंचाया है। इन तरह-तरह के प्रयासों और कार्यक्रमों तथा उनके परिणामों को कई प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल्स में भी प्रकाशित किया गया है, जो कि भारत में सार्वजिनक स्वास्थ्य पर एनडीओसी के महत्वपूर्ण प्रभावों को दर्शाता है।

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