फोर्टिस हॉस्पीटल शालीमार बाग में 46-वर्षीय महिला के अंगदान से अनेक लोगों को मिला जीवनदान


 

नई दिल्ली (अमन इंडिया) ।फोर्टिस हॉस्पीटल शालीमार बाग ने 46-वर्षीय महिला एक ऐसी महिला के परिजनों द्वारा उनका अंगदान करने के फैसले का स्वागत किया है, जिन्हें दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद ब्रेन डेड घोषित किया गया था। परिजनों द्वारा अपनी मृत संबंधी के गुर्दे, फेफड़े, और लिवर दान करने के फैसले से उन मरीजों को नई जिंदगी मिली है, जो अंगदान की प्रतीक्षा कर रहे थे। 

उक्त महिला को 19 मार्च, 2025 को काफी गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया था, और सर्वोत्तम उपचार देने के बावजूद उनका जीवन नहीं बचाया जा सका, तथा 27 मार्च, 2025 को उन्हें ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया। अपार दुःख और संताप की स्थति से गुजरने के बावजूद, उनके परिवार के सदस्यों ने उनके अंगों को दान करने का फैसला किया, जिससे कई अन्य लोगों के जीवन में उम्मीद की किरण जगी।

डॉ राकेश दुआ, सीनियर डायरेक्टर एंड एचओडी, न्यूरोसर्जरी, ने कहा, “इस मर्मस्पर्शी मामले ने यह साबित किया है कि किस तरह से गहरे दुःख की घड़ी में भी कुछ लोगों के पास इतनी ताकत होती है कि वे जिंदगी के उस पार जाकर भी अपनी विरासत पीछे छोड़ जाते हैं। हमारे अस्पताल की समर्पित टीम ने यह सुनिश्चित किया कि इस प्रक्रिया को सम्मानजनक और पेशेवर तरीके से पूरा किया जाए, तथा डोनर की विरासत का भरपूर सम्मान किया जाए जिससे इस बड़े निर्णय की महानता और विराटता सामने आए।”

डॉ पंकज कुमार, सीनियर डायरेक्टर-क्रिटिकल केयर, ने कहा, “गंभीर रूप से बीमार रोगी के लिए उत्कृष्ट मेडिकल कौशलों की ही आवश्यकता नहीं होती बल्कि मरीजों और उनके परिजनों की इच्छा का सम्मान करना भी जरूरी होता है। इस अंगदान ने नए जीवनदान की संभावनाओं को प्रदर्शित किया है और यह इस बात का भी उदाहरण है कि किस प्रकार एक व्यक्ति के निःस्वार्थ फैसले से बड़े स्तर पर फायदा पहुंच सकता है।”

 श्री दीपक नारंग, फैसिलिटी डायरेक्टर, ने कहा, “मृतक के अंगों को निकालने (ऑर्गेन रिट्रीवल) और प्रत्यारोपण (ट्रांसप्लांटेशन) के दौरान अस्पताल के विभिन्न विभागों के बीच तालमेल काफी प्रेरणास्पद था। हम दुःख की मुश्किल घड़ी में डोनर के परिजनों द्वारा प्रदर्शित उदारता के लिए उनके प्रति हृदय से आभार व्यक्त करते हैं।”

मृत डोनर की लिवर और एक किडनी को फोर्टिस हॉस्पीटल, शालीमार बाग में उन मरीजों में प्रत्योरोपित किया गया जिन्हें इन अंगों की अत्यंत आवश्यकता थी। दूसरी किडनी को फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम में एक मरीज के लिए भेजा गया जबकि फेफड़ों को केआईएमएस हॉस्पीटल्स, सिकंद्राबाद ले जाया गया जहां एक अन्य मरीज के शरीर में इनका प्रत्यारोपण किया गया। 

नोटो (NOTTO – नेशनल ऑर्गेन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइज़ेशन) के अनुसार, किसी मरीज को ब्रेन डेड घोषित किए जाने के बाद, अस्पताल उनके परिजनों को अंगदान के लिए परामर्श दे सकते हैं। नोटो के प्रोटोकॉल और दिशा-निर्देशों में यह प्रावधान है कि इलाज करने वाले अस्पताल को संभावित अंगदान के बारे में पूरी जानकारी उपलब्ध करानी होगी तथा सभी आवश्यक मंजूरी भी लेनी होगी। नेशनल ऑर्गेन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइज़ेशन के एक अनुमान के अनुसार, करीब 1.5 लाख भारतीयों को यह अंदाजा भी नहीं होता कि उन्हें अंगदान की आवश्यकता है जबकि लगभग 50,000 मरीज अंगदान की प्रतीक्षा सूची में होते हैं।

 मृत महिला के परिजनों के हृदयस्पर्शी फैसले से यह साबित हुआ कि कैसे अंगदान जैसा अहम फैसला कई लोगों की जिंदगी में उजाला भर सकता है। फोर्टिस हॉस्पीटल अंगदान के बारे में जागरूकता बढ़ाने और इस परोपकारी कार्य के लिए सामुदायिक सहयोग की भावना को बढ़ावा देने की दिशा में लगातार अपने प्रयासों को मजबूत बना रहा है।